- क्या आप जानते हैं मजिस्ट्रेट और जज में क्या अंतर है❓️
*हसमत हुसैन खान एडवोकेट*
👉मजिस्ट्रेट और जज में रैंक और अधिकार का अंतर होता है। एक मजिस्ट्रेट फांसी या उम्रकैद की सजा नहीं दे सकता। मजिस्ट्रेट के लेवल में भी कई स्तर होते हैं। इनमें जो सबसे ऊपर का पद होता है, वो होता है सीजेएम यानी चीफ ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट। महानगरों में इसे चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट भी कहते हैं।
👉एक जिले में एक सीजेएम होता है। जिला मजिस्ट्रेट का मुख्य कार्य सामान्य प्रशासन का निरीक्षण करना, भूमि राजस्व वसूलना और जिले में कानून-व्यवस्था को बनाए रखना है। यह राजस्व संगठनों का प्रमुख होता है। यह भूमि के पंजीकरण, जोते गाए खेतों के विभाजन ,विवादों के निपटारे, दिवालिया, जागीरों के प्रबंधन, कृषकों को ऋण देने और सूखा राहत के लिए भी जिम्मेदार होता है।
👉जिले के अन्य सभी पदाधिकारी उसके अधीनस्थ होते थे और अपने-अपने विभागों की प्रत्येक गतिविधि की जानकारी उसे उपलब्ध कराते हैं।
👉जिला मजिस्ट्रेट के कार्य भी इनको सौंपे जाते हैं। जिला मजिस्ट्रेट होने के नाते वह पुलिस और जिले के अधीनस्थ न्यायालयों का निरीक्षण भी कर सकते हैं। सीजेएम के ऊपर जज होते हैं।
👉जज की रैंक में आते हैं डिस्ट्रिक्ट जज और एडीजे यानी एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज। इस लेवल पर जब जज सिविल मामले देखते हैं, तो उन्हें कहते हैं डिस्ट्रिक्ट जज, लेकिन यही जज जब क्रिमिनल मामले देखते हैं तो उन्हें कहते हैं सेशन जज। जज एक ही होता है, जो दोनों तरह के मामलों की सुनवाई करता है।
👉डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन कोर्ट के फैसलों को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
