**आयुर्वेद के महान आचार्य एवं विश्व के प्रथम चिकित्सक शेषावतार महर्षि चरक जयंती आज*
*डॉ. सर्वेश कुमार शुक्ला आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल बहराइच, उत्तर प्रदेश असिस्टेंट प्रोफेसर संहिता एवं सिद्धांत विभाग के डॉ चंद्र शेखर* ने बताया कि अथर्ववेद के उपवेद और पंचम वेद आयुर्वेद के आदि चिकित्सक महर्षि चरक को भगवान शेषनाग का अवतार माना जाता है उनका जन्म ईशा से 200 वर्ष पूर्व कश्मीर के पास कपिष्ठल नामक गांव में हुआ था, श्वेत वाराह पुराण के अनुसार उनका जन्म दिवस श्रावण शुक्ल पक्ष नाग पंचमी जो कि इस बार (29 जुलाई 2025) को मनाया जा रहा है, उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर में भगवान शेषनाग के कपाट भी श्रावण शुक्लपक्ष नाग पंचमी के ही दिन खोले जाते हैं | महर्षि चरक ने अपने जीवन काल में पीड़ित मानवता की सेवा के लिए विश्व भर में विभिन्न स्थानों पर घूमते हुए चिकित्सा और उसका प्रचार – प्रसार किया | चरक संहिता को आयुर्वेदवाङ्मय मैं कायचिकित्सा के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ के रूप में जाना जाता है और इसकी महत्वता को परवर्ति आचार्यों ने श्रेष्ठः *चरकस्तु चिकित्सिते* कहकर व्यक्त किया है।
*चरक संहिता के मुख्य विषय*
– *सूत्र स्थान*: आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों, दोषों (वात, पित्त, कफ), धातुओं (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र), और मलों (मूत्र, पुरीष, स्वेद), औषधी विज्ञान, आहार, पथ्यापथ्य, विशेष रोग और शारीरिक तथा मानसिक रोगों की चिकित्सा का वर्णन किया है।
– *निदान स्थान*: आयुर्वेद पद्धति में लोगों के कारण पता करने की प्रक्रिया को निदान कहा जाता है | निदान स्थान में रोगों के कारणों और उनके निदान के तरीकों का विस्तृत वर्णन है।
– *विमान स्थान*: इस अध्याय में भोजन एवं शरीर के संबंध को दर्शाया गया है तथा स्वास्थ्यवर्धक भोजन के बारे में जानकारी प्रदान की गई है | आयुर्वेद के दार्शनिक पहलुओं, जैसे कि जीवन का उद्देश्य, आयुर्वेद के सिद्धांतों का अनुसरण करने के लाभ, और चिकित्सक के गुणों का वर्णन है।
– *शरीर स्थान*: मानव शरीर की संरचना, अंगों के कार्य, और शरीर के विभिन्न तंत्रों का विस्तृत वर्णन किया गया है, गर्भ में बालक के जन्म लेने तथा उसके विकास की प्रक्रिया को भी इस खंड में वर्णित किया गया है |
– *इंद्रिय स्थान*: इंद्रियों के कार्य और उनके विकारों का वर्णन मिलता है।
– *चिकित्सा स्थान*: इस प्रकरण में कुछ महत्वपूर्ण व्याधियों का वर्णन है | उन रोगों की पहचान कैसे की जाए तथा उनके उपचार के महत्वपूर्ण विधियां कौन सी है इसकी जानकारी भी प्रदान की गई है |
– *कल्प स्थान*: औषधियों के निर्माण और उनके उपयोग का वर्णन है।
– *सिद्धि स्थान*: चिकित्सा के सिद्धांतों और उनके अनुप्रयोग का वर्णन है |
*आचार्य चरक के महत्वपूर्ण सिद्धांत*
1. *त्रिदोष सिद्धांत*: आचार्य चरक ने शरीर के तीन दोषों – *वात*: वात दोष वायु तत्व से संबंधित है और शरीर की गति और क्रिया को नियंत्रित करता है।
– *पित्त*: पित्त दोष अग्नि तत्व से संबंधित है और शरीर की पाचन और चयापचय क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
– *कफ*: कफ दोष जल और पृथ्वी तत्व से संबंधित है और शरीर की संरचना और स्नेहन क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
2. *पंचभौतिक सिद्धांत*: आचार्य चरक ने रोगों के कारण और निदान के लिए पंचभौतिक सिद्धांत का प्रयोग किया है, जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के तत्वों का महत्व है।
3. *औषधीय पौधों और खनिजों का उपयोग*: आचार्य चरक ने औषधीय पौधों और खनिजों के उपयोग पर विस्तार से जानकारी दी है, जो आयुर्वेदिक उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
4. *शल्य चिकित्सा और अन्य चिकित्सा प्रक्रियाएं*: आचार्य चरक ने शल्य चिकित्सा और अन्य चिकित्सा प्रक्रियाओं का वर्णन किया है, जो आयुर्वेदिक उपचार के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।
5. *स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के लिए जीवनशैली और आहार*: आचार्य चरक ने स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के लिए जीवनशैली और आहार के महत्व पर जोर दिया है, जो आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों में से एक है।
*महर्षि आचार्य चरक ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के सम्बन्ध में कहा है:** एक चिकित्सक अगर किसी रोगी की बीमारी का इलाज तब तक नहीं कर सकता जब वह अपने ज्ञान और समझ के प्रकाश का उपयोग करके मरीज के शरीर को समझता नहीं। चिकित्सक को सबसे पहले उन कारणों का अध्ययन करना चाहिए जो रोगी को प्रभावित करते हैं तत्पश्चात उसका उपचार किया जाना चाहिए | हालांकि यह कथन आज व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है, लेकिन यह 20 शताब्दियों पहले एक अभूतपूर्व अवधारणा थी जिसने स्वास्थ्य और बीमारी के बीच वैश्विक संबंध की हमारी समझ को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया |
आचार्य चरक के योगदान ने आयुर्वेद को एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक चिकित्सा प्रणाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी शिक्षाएं और विचार आज भी प्रासंगिक हैं और आयुर्वेद के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। महर्षि चरक जयंती के अवसर पर हमें उनके अहम योगदान के लिए कृतज्ञता प्रकट करना चाहिए।
